ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की
बहुत होते है यारों चार दिन भी
खुदा को पा गया वाइज़ मगर है
ज़रूरत आदमी को आदमी की
मिला हूँ मुस्कुरा के उस से हर बार
मगर आँखों में भी थी कुछ नमी सी मुहबत मै कहे क्या हाल दिल का
ख़ुशी ह़ी काम आती है ना गम ह़ी
भरी महफ़िल में हर एक से बचाकर
तेरी आँखों ने मुझ से बात कर ली लड़कपन की अदा है जानलेवा
गज़ब की छोकरी है हाथ भर की
रकीब-इ-ग़मज़दा अब सबर कर ले
कभी उससे भी मेरी दोस्ती थी - फिराक गोरखपुरी
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