Wednesday, 10 August 2011


ना मुहबत ना दोस्ती के लिए 
वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए 
दिल को अपने सजा ना दे यू ह़ी 
इस ज़माने की बेरुखी के लिए 
कल जवानी का हश्र क्या होगा 
सोच ले आज दो घडी के लिए 
हर कोई प्यार ढूँढता है यहाँ 
अपनी तनहा सी ज़िन्दगी के लिए 
वक़्त के साथ साथ चलता रहे 
यही है बेहतर आदमी के लिए 

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