Tuesday, 19 April 2011

अजब पागल सी लड़की है...

अजब पागल सी लड़की है
मुझे हर ख़त में लिखती है
"मुझे तुम याद करते हो?
तुम्हे मै याद आती हूँ?"
मेरी बातें सताती हैं?
मेरी नींदें जगाती हैं?
मेरी आँखें रुलाती हैं?
दिसंबर की सुनहरी धूप में अब भी टहलते हो?
किसी ख़ामोश रस्ते से कोई अवाज़ आती है?
ठिठुरती सर्द रातों में तुम अब भी छत पे जाते हो?
फ़लक के सब सितारों को मेरी बातें सुनाते हो?
किताबों से तुम्हारे इश्क़ में कोई कमी आई?
या मेरी याद की शिद्दत से आँखों में नमी आई?

अजब पागल सी लड़की है
मुझे हर ख़त में लिखती है

जवाब में उस को लिखता हूँ
मेरी मसरूफ़ियत देखो सुबह से शाम औफ़िस में
चराग़-ए-उम्र जलता है
फिर उसके बाद दुनिया की
कई मजबूरियां पाँव में बेड़ी ड़ाल रखती हैं
मुझे बेफ़िक़्र, छत से, भरे सपने नहीं दिखते
टहलने, जागने, रोने की मोहलत ही नहीं मिलती
सितारों से मिले अरसा हुआ, नाराज़ हों शायद
किताबों से शग़फ़ मेरा अभी वैसे ही क़ायम है
फ़र्क़ इतना पड़ा है अब उन्हे अरसे में पढ़ता हूँ
तुम्हे किसने कहा पगली तुम्हे मै याद करता हूँ
के मै ख़ुद को भुलाने की मुसलसल जुस्तजू में हूँ
तुम्हे ना याद आने की मुसलसल जुस्तजू में हूँ
मगर ये जुस्तजू मेरी बहुत नाकाम रहती है
मेरे दिन रात में अब भी तुम्हारी शाम रहती है
मेरे लफ़्ज़ों की हर माला तुम्हारे नाम रहती है
तुम्हे किसने कहा पगली तुम्हे मै याद करता हूँ
पुरानी बात है जो लोग अक़्सर गुनगुनाते हैं
उन्हे हम याद करते हैं जिन्हे हम भूल जाते हैं
अजब पागल सी लड़की हो
मेरी मसरूफ़ियत देखो
तुम्हे दिल से भुलाऊं तो तुम्हारी याद आये ना
तुम्हे दिल से भुलाने की मुझे फ़ुरसत नहीं मिलती
और इस मसरूफ़ जीवन में
तुम्हारे ख़त का इक जुमला
"तुम्हे मै याद आती हूँ?"
मेरी चाहत की शिद्दत में कमी होने नहीं देता
बहुत रातें जगाता है मुझे सोने नहीं देता
सो अगली बार अपने ख़त में ये जुमला नहीं लिखना

अजब पागल सी लड़की है मुझे फिर भी ये लिखती है
मुझे तुम याद करते हो? तुम्हे मै याद आती हूँ- 
सरफ़राज़ अमानी 

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