Sunday, 26 October 2014

अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है ?

अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है ?

उठी ऐसी घटा नभ में
छिपे सब चाँद और तारे,
उठा तूफ़ान वह नभ में
गए बुझ दीप भी सारे

मगर इस रात में भी लौ लगाये कौन बैठा है ?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है ?

गगन में गर्व से उठ उठ
गगन में गर्व से घिर घिर,
गरज कहती घटाए हैं
नहीं होगा उजाला फिर

मगर चिर ज्योति में निष्ठा जमाये कौन बैठा है ?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है ?

तिमिर के राज्य का ऐसा
कठिन आतंक छाया है,
उठा जो शीश सकते थे
उन्होंने सिर झुकाया है

मगर विद्रोह की ज्वाला जलाये कौन बैठा है ?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है ?

प्रलय का सब समां बांधे
प्रलय की रात है छाई
विनाशक शक्तियों की इस
तिमिर के बीच बन आयी

मगर निर्माण में आशा दृढआये कौन बैठा है ?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है ?

प्रभंजक मेघ दामिनी ने
न क्या तोडा न क्या फोड़ा,
धरा के और नभ के बीच
कुछ साबुत नहीं छोड़ा

मगर विश्वास को अपने बचाए कौन बैठा है ?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है ?

प्रलय की रात को सोचे

प्रणय की बात क्या कोई

मगर प्रेम बंधन में
समझ किसने नहीं खोई

किसी के पंथ में पलकें बिछाये कौन बैठा है ?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है ?

श्री हरिवंश राय बच्चन जी की कलम से एक कविता

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