Monday, 15 April 2013

उत्तर दो रघुनंदन


सीतामढ़ी के मंदिर में - माँ सीता की प्रतिमा



हे आर्य पुत्र मेरी 
शंका का समाधान करो 
मै धरा -नंदिनी सीता आज तुमसे एक प्रश्न पूछती हूँ
वो पुत्र तुम ही हो न
जिसने पिता के वचन हेतु
चौदह साल का बन गमन
सहर्ष स्वीकारा परन्तु
पत्नी को दिए सात वचन
तुम कैसे भूल गये
हे राघव तुम भले ही
मात्रपितृ भक्त हो
अनुकरणीय भ्राता भी
परन्तु क्या तुम
उपमेय पति हो ?
अपनी आसन्नप्रसवा पत्नी को
बन भेज कर तुमने किस -
मर्यादा का पालन किया
जो तुम्हारे ही वंशज को
अपने रक्त मांस से पोस रही थी
उसे बन की कठोर जीवन शैली
सौपते हुए तुम्हारा ह्रदय नहीं कांपा
तुममें इतना भी साहस न था
कि उसे उसका अपराध बता कर
स्वयं छोड़ आते --परन्तु
लघु भ्राता द्वारा भेज तुमने
अपना अपराध बोध तो
स्वयं ही सिद्ध कर दिया-
अयोध्या नरेश ये कैसा न्याय है ?
कैसी मर्यादा है मर्यादापुरुषोत्तम ?
अब क्या कहूँ --नहीं कहूँगी कुछ
मै अनुगामिनी हूँ तुम्हारी --
हे रघुवीर बन गमन के समय
तुम्हारे साथ आने का निर्णय मेरा था
पतिधर्म में कौन सी कमी रह गई थी
जो मेरी अग्नि परीक्षा ली तुमनें
हे राघव दुःख और कठिन परीक्षा की
घड़ी में छाया की भाँती साथ रही
अपनी ही अनुगामिनी को
धोबी के मात्र दो बोलों पे त्याग दिया
जाओ दशरथंनंदन मै जनकनंदिनी वसुधापुत्री
सीता तुम्हे छमा करती हूँ जानते हो आर्य पुत्र
मै धरा की पुत्री हूँ माता का धैर्य है मुझमें
तुम्हारे पुत्र तुम्हे सौंप --मै अपनी माँ की गोद में
विश्राम करती हूँ --हे रघुवीर तुम्हे त्याग कर
सदा के लिए --बस यही प्रतिकार है मेरा
मुझे ज्ञात है तुम अनुत्तरित ही रहोगे - Divya Shukla

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